This is an authorized translation of an Eos article. यह Eos लेख का अधिकृत अनुवाद है।

शहर, अर्बन हीट आइलैंड प्रभाव और स्थानीय बाढ़ से ग्रस्त हैं। शहरों की योजना बनाने वाले अक्सर साथ में पार्क बनाने और  घरों के अंदर और बाहर जैविक दीवारें  और  हरित छतों  जैसी निर्माण प्रथाओं को अपनाने का सुझाव देते हैं, जिनसे ठंडक मिल सकती है और तूफ़ानी जल अपवाह का अपशोषण हो सकता है। लेकिन नए शोध से पता चलता है कि शहरी हरियाली की कोशिश करने से अलग-अलग पर्यावरणों पर अलग-अलग प्रभाव पड़ सकते हैं। समुदायों को पहचानना होगा कि उन्हें सबसे ज़्यादा ज़रूरत किस चीज़ की है, और सोचना पड़ेगा कि कौन सा हरित अभ्यास उसे सबसे बेहतर ढंग से पूरा कर सकता है। शहरी हरियाली के बहुत से संभावित लाभ हैं, लेकिन जैसा कि वेल्स के  कार्डिफ विश्वविद्यालय  के स्कूल ऑफ अर्थ एण्ड एनवायरनमेंटल साइंसेस के मुख्य लेखक और मुख्य शोधकर्ता मार्क कथबर्ट (Mark Cuthbert) ने कहा है “एक संदर्भ के लाभ दूसरे संदर्भ में भी मिलेंगे, ज़रूरी नहीं है”। कथबर्ट और उनके सहायक लेखकों ने अलग-अलग पारिस्थितिक तंत्रों पर शहरी हरियाली का प्रभाव समझने के लिए एक शोध किया।

“शुष्क जलवायु में, शहरी हरियाली सबसे अच्छा काम करती है जब सतह के पानी के अपवाह को कम करने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, जबकि अधिक आर्द्र जलवायु में, शीतलन से अधिक फ़ायदा होने की संभावना होती है।”

एक प्रमुख खोज यह है कि शुष्क जलवायु में, शहरी हरियाली सबसे अच्छा काम करती है जब सतह के पानी के अपवाह को कम करने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, जबकि अधिक आर्द्र जलवायु में, शीतलन से अधिक फ़ायदा होने की संभावना होती है। कथबर्ट ने समझाया, इस संबंध की वजह से “दुनिया के अधिकतर शहरों में अर्बन हीट आइलैंड और शहरी बाढ़ की समस्याओं दोनों को एक साथ संबोधित करने के लिए सामान्य शहरी हरियाली नीतियाँ सबसे अच्छा प्रदर्शन नहीं दे सकती।”  

अन्य कारक, जैसे कि सबस्ट्रेट (जीवाणुओं के पनपने की सतह) की मोटाई यह निर्धारित कर सकती है कि शहरी हरियाली कितनी लाभदायक है। सामान्य तौर पर, शहरी पार्कों जैसी मोटी मिट्टी में मिट्टी की नमी को संचित करके रखने की बेहतर क्षमता होती है और इस तरह जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसम की घटनाओं में अधिक मज़बूत होने के अलावा, वह शीतलन और जल प्रतिधारण दोनों के ही थोड़े-थोड़े लाभ दे सकती है। अध्ययन के अनुसार हरी छतों जैसे पतले सबस्ट्रेट्स केवल “ठीक-ठाक प्रदर्शन” देते हैं।

हरिणी नगेन्द्र (Harini Nagendra), जो भारत में अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय में जलवायु परिवर्तन एवं संवहनीयता केंद्र का नेतृत्व करती हैं, नए अध्ययन में शामिल नहीं थीं, लेकिन उन्होंने इस विषय पर आगे शोध की ज़रूरत पर ज़ोर दिया: “उष्णकटिबंध (ट्रॉपिकल) शहरों को समशीतोष्ण (टेम्परेट) शहरों से अलग रणनीतियों का पालन करने की ज़रूरत होगी। लेकिन इन में से अधिकतर मॉडल और क्षेत्र अध्ययन टेम्परेट शहरों में किये गए हैं, तो हमारे पास ट्रॉपिकल शहरों के लिए सबसे बेहतर रणनीतियाँ बनाने के लिए पर्याप्त जानकारी नहीं है।”

स्थानीय नियोजन और सामुदायिक भागीदारी की ज़रूरत  

हालांकि शहर की योजना बनाने वाला पार्क के स्थानिक जलवायु लाभों के आधार पर एक पार्क बनाना चाह सकता है, यह ध्यान में रखते हुए कि समुदाय के निवासी अपने आस-पड़ोस में वास्तव में क्या चाहते हैँ, जैसा नगेन्द्र ने कहा कि यह शहरी हरियाली नीतियों और परियोजनाओं के लिए “बहुत सी जटिल परतें जोड़ देता है।” वे अर्बन फॉरिस्ट्री एण्ड अर्बन ग्रीनिंग में जनवरी 2021 में छपे पेपर कि सह लेखिका थीं जिसने मध्य भारत के 6 मिलियन से अधिक जनसंख्या वाले शहर, हैदराबाद, के शहरी पार्कों पहुँचने में लिंग और आय से संबंधित असमानताएँ पाईं।

अध्ययन में शहर के चार पार्कों पर ध्यान केंद्रित किया और पाया कि निम्न-आय समूहों को अधिकारहीन कर दिया गया था। उदाहरण के लिए, सभी पार्कों में प्रवेश के लिए फीस थी, साथ ही यह नियम भी था कि कोई फूल नहीं तोड़ेगा। इसके साथ ही, महिला निवासियों ने सुरक्षा के बारे में चिंता उठाई। शहरी पार्क, जैसे हैदराबाद में हैं, उन्हें “सभी की पहुँच के साथ, जन-जन के लिए पुनः कल्पित किया जाना चाहिए,” पेपर ने निष्कर्ष दिया। विशेषज्ञों का कहना है कि हरित स्थलों को बनाने से जेंट्रीफिकेशन की प्रक्रिया द्वारा सामाजिक असमानताऐं भी हो सकती हैं। बार्सिलोना लैबोरेट्री फॉर अर्बन एनवायरमेंटल जस्टिस एण्ड सस्टेनेबिलिटी की निदेशक, ईसाबेल एंगेलोवस्की (Isabelle Anguelovski), का कहना है कि हरित अवसंरचना “ज़मीन और घरों की ऊंची कीमतों का कारण बन सकती है और इसलिए जेंट्रीफिकेशन की प्रक्रियाओं के कारण सामाजिक रूप से सबसे कमज़ोर निवासियों का विस्थापन हो सकता है।”

“हरियाली का एक संकीर्ण परिप्रेक्ष्य जो केवल पारिस्थितिक लाभों पर केंद्रित है, उसके कारण सामाजिक असमानताओं के निर्माण का जोखिम हो सकता है।”

एंगेलोवस्की ने आगे कहा, कि शहर हरे और न्यायपूर्ण होने चाहिए और हरियाली का एक संकीर्ण परिप्रेक्ष्य जो केवल पारिस्थितिक लाभों पर केंद्रित है, और यदि यह सुदृढ़ किफ़ायती आवास और समावेशी हरित नीतियों के साथ या उनसे पहले नहीं आता है, तो उसके कारण सामाजिक असमानताओं के निर्माण का जोखिम हो सकता है।

पहले की रिपोर्टों ने स्पष्ट किया है कि कैसे स्थानीय समुदायों की सहभागिता पर्यावरण की दृष्टि से न्यायपूर्ण हरित स्थान बनाने में मदद कर सकती है। कथबर्ट ने कहा कि कार्यान्वयन रणनीतियों को “सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक कारकों की और भी व्यापक श्रेणी को ध्यान में रखना चाहिए।”

“क्या यह एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ बच्चों के लिए खेलने की जगह नहीं है और वहाँ अधिक मोटापा है? क्या [निवासी] बच्चों के खेलने के लिए सुरक्षित खुला स्थान चाहते हैं?” नगेंद्र ने पूछा। “या यह एक खाद्य रेगिस्तान है, जहाँ उनके लिए सामुदायिक बागवानी क्षेत्रों का होना ज़्यादा ज़रूरी है जहाँ लोग अपना भोजन खुद उगा सकते हैं?”

ऐसी हरित परियोजनाओं को “पत्थर की लकीर नहीं बनाया जा सकता,” नगेन्द्र ने कहा। हरित स्थलों का निर्माण “परिदृश्य और समुदाय में सामाजिक-पारिस्थितिक परिवर्तन शुरू कर देगा, जिनमें से सभी का पहले से अनुमान नहीं लगाया जा सकता है।” उदाहरण के लिए, उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में, हरियाली के ऐसे उपाय हो सकते हैं, जो अनजाने में पानी के अवशोषण को बढ़ाते हैं, तो उनसे उन क्षेत्रों में जलभराव हो सकता है जिसमें मच्छर पनपते हैं। वे जो बीमारियाँ लाते हैं, उसके लिए जल निकासी के लिए बुलाना पड़ सकता है, जो हरियाली के कार्य में अनुकूलन और लगातार पुनर्मूल्यांकन के महत्व को रेखांकित करता है। 

नगेन्द्र ने कहा, अंततः, हरित स्थानों के निर्माण के लिए “वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों और स्थानीय निवासियों के बीच सह-निर्माण की आवश्यकता होती है, और यह एक पारस्परिक प्रक्रिया है जहाँ कोई आसान शॉर्टकट नहीं हैं।”

—ऋषिका पर्दिकर (@rishpardikar), विज्ञान लेखक

Text © 2023. The authors. CC BY-NC-ND 3.0
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